।। अथ तृतीयोऽध्यायः ।।

।। चौपाई ।।

सीता शुनथि शुनय नहि आन । 
शञ्च शञ्च कह तहँ हनुमान ।। 1 ।।

राजा दशरथ काँ सुत चारि । 
जेठ राम काँ सीता नारि ।। 2 ।।

शिव-धनु तोड़ल मिथिला जाय । 
जनक देल कन्या से न्याय ।। 3 ।।

परशुराम अयला कय कोप । 
तनिकर भय गेल गर्व्वक लोप ।। 4 ।।

भूमि-भार-संहारक काज । 
विघ्न कयल बड़ देव-समाज ।। 5 ।।

बारह वर्ष राम वनवास । 
केकयि परवश कयल प्रयास ।। 6 ।।

हरल शारदा केकयि-क्षान । 
ककरो कहल कि रानी मान ।। 7 ।।

वर न्यासित दसरथ सौँ लेल। 
दशरथ-प्राण रहित भय गेल ।। 8 ।।

लक्ष्मण सीता संगैँ राम । 
पंचवटी मे कैलनि धाम ।। 9 ।।

भिक्षुक बनि रावण सञ्चरल । 
शुन्याश्रम सौँ सीता हरल ।। 10 ।।

दश-भालक संग लड़ल जटाउ । 
दृष्ट कथा हम कते शुनाउ ।। 11 ।।

कानन-कथा सकल से कहल । 
विरही विकल राम दुख सहल ।। 12 ।।

किष्कन्धा मे यहन चरित्र । 
बालि घालि सुग्रीव सुमित्र ।। 13 ।।

सुग्रीवक हम मन्त्रि प्रधान । 
नाम हमर कह जन हनुमान ।। 14 ।।

वानर दूत फिरय देश । 
सीतान्वेषण मुख्य निदेश ।। 15 ।।

तहि मे हमहूँ पयोनिधि फानि । 
अयलहूँ लङ्का जानकि जानि ।। 16 ।।

वृद्ध गृद्ध कहलनि सम्पति । 
घुरि फिरि देखल लङ्का राति ।। 17 ।।

दबकल दबकल यहि तरु कात । 
देखल शुनल गञ्जन उतपात ।। 18 ।।

हम कृतार्थ भेलहुँ अछि आज । 
हमहि कयल रघुनन्दन-काज ।। 19 ।।

जनक-नन्दिनी देखल आँखि । 
अयलहूँ सङ्गी पारहि राखि ।। 20 ।।

।। षट्पद छन्द।।

नहि अछि आज्ञा तेहन, 
जेहन हम कौतुक करितहूँ ।। 21 ।।

लङ्कापुरी उखाड़ि प्रभुक पद लग लय धरितहूँ ।। 22 ।।

दशमुख सौँ कय बेरि अपन दुहु पयर धरबितहूँ ।। 23 ।।

लाँगड़ि मे लपटाय बाँधि सभ लोक फिरबितहूँ ।। 24 ।।

जननि थोड़े दिन विपत्ति अछि, 
सकुल सदल रावण मरत ।। 25 ।।

गृद्ध काकगण मगन मन, 
लङ्कापुर डेरा करत ।। 26 ।।

।। चौपाई ।।

धयलैँ छली अशोकक डारि । 
शुनल सकल मन रहलि  विचारि ।। 27 ।।

कहयित के अछि कथा चिन्हार । 
देखतहुँ लोचन बह जल षार ।। 28 ।।

दुःख अपार निन्द नहि आब । 
गगन वचन हित हमर शुनाव ।। 29 ।।

मरइत राखि लेल जे प्राण । 
वचन शुनाओल अमृत समान ।। 30 ।।

दया करथु से दर्शन देथु । 
सुकृति-समाज सहज यश लेथु ।। 31 ।।

शञ्च शञ्च से कयल प्रणाम । 
ह्रदय राखि रघुनन्दन राम ।। 32 ।।

सीता-वचन शुनल हनुमान । 
प्रकट भेल कलविङ्क-प्रणाम ।। 33 ।।

पीत वर्ण मुख अतिशय लाल । 
बध्दाञ्जलि मन हर्ष विशाल ।। 34 ।।

आगाँ आबि प्रणत कपि रहल । 
देखइत सीता मनमे कहल ।। 35 ।।

वानर-रूप धयल दशकण्ठ । 
हमरा मोहय कारण चण्ठ ।। 36 ।।

रहलि अधोमुखि विकलि  अवाक । 
रावण-भ्रम मे कतहूँ न ताक ।। 37 ।।

मानिय हमरा जननि न आन । 
हम रघुपतिक दास हनुमान ।। 38 ।।

पवनक तनय विनययुक्त जानि । 
सज्जन थिकथि ह्रदय अनुमानि ।। 39 ।।

।। दोहा ।।

शाखामृग निश्चय अहाँ, 
हमरा मन विश्वास ।। 40 ।।

नर-वानर-सँघटन- विधि, 
कारण करू प्रकाश ।। 41 ।।

।। चौपाई ।।

दूर-स्थित कहलनि हनुमान । 
जननि कहब हम वचन प्रमाण ।। 42 ।।

लक्ष्मण-सहित राम घनश्याम । 
धनुर्बाण धर छवि अभिराम ।। 43 ।।

ऋष्यमूक लग अयला जखन । 
दृष्टि पड़ल सुग्रीवक तखन ।। 44 ।।

हमरा ततय पठौलनि विकल । 
इष्ट अनिष्ट बुझू विधि सकल ।। 45 ।।

इष्ट मानि मन दुनु भाय । 
लय गेलहुँ हम काँध चढ़ाय ।। 46 ।।

 अचल सख्य सुग्रीवक सङ्ग । 
थोड़बहि दिनमे सङ्कट भङ्ग ।। 47 ।।

रामक कर-शर बालिक मरण । 
भव-जलनिधि बाली सन्तरण ।। 48 ।।

से सुग्रीव पठाओल दूत । 
दशदिश वानर वीर बहुत ।। 49 ।।

चलयित कहलनि श्रीरघुनाथ । 
कार्य्य-सिद्धि कपि अहँइक हाथ ।। 50 ।।

सानुज हमर कुशल सभ्माषि।  
देव मुद्रिका आगाँ राखि ।। 51 ।।

रामक चर प्रभु-मुद्रा सङ्ग । 
रावण-गण मन कीट पतङ्ग ।। 52।।

यहि मे तनिक लिखल अछि नाम । 
देल चिन्हारय कारण राम ।। 53 ।।

।। षट्पद।।

निर्धन करथि कुबेर, 
कुबेर करथि प्रभु निर्धन ।। 54 ।।

जे चाहथि से करथि, 
देव कौशल्या-नन्दन ।। 55 ।।

हम आयल छी सिन्धु फानि, 
देखल लङ्का-भट ।। 56 ।।

हमरहु ई सामर्थ्य, द
शानन मारी चटपट ।। 57 ।।

लेल जाय प्रभु-मुद्रिका, 
मानी जनु किछु आन मन ।। 58 ।।

प्रणत ठाढ़ दय मुद्रिका, 
हाथ जोड़ि रहला तखन ।। 59 ।।

।। चौपाई ।।

चिन्हल मुद्रिका माथा धयल ।
कत विलाप कनइत तत कयल ।। 60 ।।

कियक कयल रघुवर-कर त्याग । 
हमरे सन की भेल अभाग ।। 61 ।।

राम भवन वन हम अहँ बाट । 
सब जनि स्नान कयल एक घाट ।। 62 ।।

के कर वनिता-जन विश्वास । 
कहु कहु मुद्रा वचन प्रकाश ।। 63 ।।

प्राण-वान कपि कयलहुँ आय । 
मरितहूँ एहिखन सङ्कट पाय ।। 64 ।।

प्रभुकाँ अहँक सदृश नहि आन । 
हमरहु भेल विदित अनुमान ।। 65 ।।

हमरा निकट पठाओल नाथ । 
देल मुद्रिका अहँइक हाथ ।। 66 ।।

गञ्जन दुःख देखल प्रत्यक्ष । 
कहबनि सानुज प्रभुक समक्ष ।। 67 ।।

दया करथु आबथु राघुनाथ । 
यम-घर पहुँच शीघ्र दशमाथ ।। 68 ।।

दूइ मास जखना बिति जायत । 
नहि जौँ अयोता राक्षस खायत ।। 69 ।।

कपिपति सहित सैन्य समुदाय । 
लय आबयु सङ्क छुटि जाय ।। 70 ।।

यावत नहि रावण-संहार । 
ताबत हमरा कारागार ।।  71 ।।

तेहन उपाय करब हनुमान । 
सत्वर रावण त्यागय प्राण ।।  72 ।।

मारुत-सुत कह शुनू जगदम्ब । 
हमरा जयबा धरिक बिलम्ब ।।  73 ।।

ककरा रावण कयल न आट । 
हुनका यमघर गेलहिँ बाट ।।  74 ।।

सायुध अयोता लक्ष्मण राम । 
अहँ काँ लय जयता निज धाम ।।  75 ।।

पूछल जानकी कहु कहु कीश । 
कुशल करथु अहँ काँ जगदीश ।।  76 ।।

।। चरणकुल दोहा।।

लाँघि समुद्र सहित कपिसेना, 
सानुज करुणागेह ।।  77 ।।

अयोता कोन उपाय कहू कपि, 
हमरा मन सन्देह ।।  78 ।।

।। चौपाई।।

हमरा काँध चढ़ल दुहु बन्धु। 
अयोता लाँघि अगम्य कि सिन्धु ।।  79 ।।

सैन्य सहित कपि बालिक भाय । 
सभकेँ लओता गगन उड़ाय ।।  80 ।।

से कर रावण सगण विनाश । 
हुनका नहि रण कालक त्रास ।।  81 ।।

आज्ञा देल जाय हम जाउ । 
रावणारि केँ सत्वर लाउ ।।  82 ।।

देल मुद्रिका परिचय काज । 
प्रत्यय-पात्र हमहुँ तैँ आज ।।  83 ।।

परिचायक किछु भेटय तेहन । 
कहब शुनल देखल अछि जेहन ।।  84 ।।

चूड़ामणि देल सहित विचार । 
दीना दीनदयालुक दार ।।  85 ।।

कागत मसि नहि अछि यहि ठाम । 
कोटि कोटि कहि देब प्रणाम ।।  86 ।।

जिबइत छथि जानकि तहि देश । 
दशमुख विशभुज बस असुरेश ।।  87 ।।

चित्रकूट गिरि जखन निवास । 
गुप्त-कथा कहि देब प्रकाश ।।  88 ।।

शयित छला प्रभु हमरा अङ्क । 
सुख सुषुप्ति प्रिय काँ निश्शङ्क ।।  89 ।।

इन्द्रक बालक कालक फेर । 
काक बनल आयल ओहि बेर ।।  90 ।।

चरणाङ्गुष्ठ मे चञ्चु प्रहार । 
अबितहिँ कयलक रहित-विचार ।।  91 ।।

के दुख देलक अहँकाँ दुष्ट । 
जगला लगला पुछय रुष्ट ।।  92 ।।

अपनहुँ देखल तखनहुँ काक । 
उड़ि उड़ि आबय निर्भय ताक ।।  93 ।।

चहलक पुन हम मारब लोल । 
उठल निवारण कारण घोल ।।  94 ।।

तृणकाँ लय दिव्यास्त्र बनाय । 
तनिकाँ ऊपर देल चलाय ।।  95 ।।

देखलनि ज्वलित अबै अछि बाण । 
कि कहब उड़ला लै के प्राण ।।  96 ।।

इन्द्रादिक नहि रक्षा कयल । 
फिरि घुरि पुन प्रभु-शरणे धयल ।।  97 ।।

त्राहि त्राहि राखू एहि बेरि । 
करब उपद्रव हम नहि फेरि ।।  98 ।।

चरण न छोड़ गेल लपटाय । 
अस्त्र अमोघ वृथा नहि जाय ।।  99 ।।

इन्द्रक बालक कौआ जाह । 
एक आँखि कय देबहु कनाह ।।  100 ।।

काक-स्वरूप ज्ञात संसार ।  
आकृति जेहन तेहन व्यवहार ।।  101 ।।

से पौरुष से प्रभु रघुनाथ अजगुत 
जिबितहिँ अछि दशमाथ ।।  102 ।।

ई शुनि कहल तखन हनुमान । 
अयोता शीघ्र राम भगवान ।।  103 ।।

लङ्का नगरी सकल उजारि जयता 
घर घुरि रावण मारि ।।  104 ।।

।। दोहा।।

कहल जानकी अहिँक सन, 
कपिदल सूक्ष्म-शरीर ।।  105 ।।

युद्ध असम्भव असुर सौँ, 
नहि होइछ मन थीर ।।  106 ।।

।। कुण्डलिया।।

शुनइत सीता-वचन कपि, 
पुर्व्व-रूप बनि गेल ।।  107 ।।

कनक शैल-शंकाश तन, 
मन अति हर्षित भेल ।।  108 ।।

मन अति हर्षित भेल, 
कहल सभ गुण अहँ आगर ।।  109 ।।

मेरु सदृश अहँ मथित, 
करब रावण-बल-सागर ।।  110 ।।

देखति राक्षसि लोक, 
एखन धरि नहि अछि जनइत ।।  111 ।।

कुशल प्रभुक तट जाउ, 
कहब जे छल छी शुनइत ।।  112 ।।

।। कवित्त रूपक घनाक्षरी।।

बड़ हम भूषल चलल नहि जाइ अछि ।।  113 ।।

आज्ञा देल जाय जाय हम फल किछु खाय लेब ।।  114 ।।

‘चन्द्र’ भन रामचन्द्र-चरण-भरोस मन ।।  115।।

अपनैँक पदधूरि माथ मे लगाय लेब ।।  116 ।।

चलल प्रबल पवमान हनुमान वीर ।।  117 ।।

मनमे कहल फल खाय केँ अघाय लेब ।।  118 ।।

प्रभुक विमुख दश-मुखक सन्मुख जाय ।।  119 ।।

शूरता देखाय नाम अपन बजाय लेब ।।  120 ।।

तड़पि तड़पि तत तरु तड़ तड़ तोड़ि ।।  121 ।।

रोक  के अशोक-वर-वाटिका उजाड़ि देल ।।  122 ।।

रहल न चैत्य तरु महल ढहल कत ।।  123 ।।

सीताक निवास शिंशपाक तरु छाड़ि देल ।।  124 ।।

पकड़ पकड़ कपि जाय न पड़ाय कहुँ ।।  125 ।।

कहल तानिकाँ मारि पृथ्वी मे पाड़ि देल ।।  126 ।।

लङ्कापुर जाय जहाँ सङ्गी न सहाय ।।  127 ।।

तहाँ मारुत-नन्दन रौद्र वीरता उघाड़ि देल ।।  128 ।।

।। चौपाई।।

विकटा-गण मन गेलि डराय । 
कल कौशल सीता लग जाय ।।  129 ।।

कहु कहु जानकि कपि निर्भीक । 
बुझला जाइछ थिकथि अहीँके ।।  130 ।।

बजइत छलहुँ कलपि किछु सञ्च । 
चुप चुप कयल कि अहाँ प्रपञ्च ।।  131 ।।

हमरा त्रास अहाँ निस्त्रास । 
मन मे जनु दृढ भय गेल आश ।।  132 ।।

कनइत छलहुँ भेलहुँ  अछि चूप । 
देखि पड़ आनन हर्षक रूप ।।  133 ।।

जानकि कहू करी जनु लाथ । 
कहिया अओता पति रघुनाथ ।।  134 ।।

सभ जनि शुनू विपतलि कि बाज । 
थिक प्रपञ्च किछु राक्षस-राज ।।  135 ।।

अपनहिँ सभहिँ कहू की थिक । 
राक्षस माया-ज्ञान अधीक ।।  136 ।।

राक्षसि-दशा कहल की जाय । 
गमहि गमहि सभ गेलि पड़ाय ।।  137 ।।

।। दोहा।।

सीता कारागार मे, 
यामिक दनुजी जानि ।।  138 ।।

दशमुख पूछलनि कह कुशल, 
भयभीता अनुमानि ।।  139 ।।

।। दोवय छन्द।।

त्रास देखाय करू वश सीता, 
कहल भेल की अयलहुँ ।।  140 ।।

सीताकाँ एकसरि की त्यागल, 
एको जनि उचित न कयलहुँ ।।  141 ।।

दशमुख-वचन शुनल से कहलनि, 
सेवा कयल अघयलहुँ ।।  142 ।।

मर्क्कट एहन विकट नहि देखल, 
लय लय प्राण पड़यलहुँ ।।  143 ।।

रक्षक मध्य एको जन नहि छथि, 
तनिके वार्त्ता लयलहुँ ।।  144 ।।

सकल अशोक वाटिका उजड़ल, 
सीता निकट नुकयलहुँ ।।  145 ।।

राजकीय पन्थैँ के सञ्चर, 
उबटे पथ धय अयलहुँ ।।  146 ।।

सीता त्रास देखाबय गेलहुँ, 
अपनहिँ तत्रासित भेलहुँ ।।  147 ।।

 ।। पदाकुल दोहा।।

सीता मन आनन्दित देखल, 
पूछलैँ कयलनि लाथ ।।  148 ।।

हुनकर रङ्ग तेहन सन देखल, 
लङ्का-जय जनु हाथ ।।  149 ।।

निर्भय कपि की सहजहिँ जायत, 
भिड़ता से मरताह ।।  150 ।।

कालरूप कपि सङ्गर भेलैँ, 
नहि घर केओ घुरताह ।।  151 ।।

।। घनाक्षरी ।।

जानकी निकट हम जायब कि घूरि पुन ।।  152 ।।

कनक-भूधर सन वानर विशाल से ।।  153 ।।

काँच ओ पाकल फल एको न बचल हाय ।।  154 ।।

खाय सभ गेल कत गोट मुह गाल से ।।  155 ।।

आयल कहाँ सौँ कहाँ छल हम देखल न ।।  156 ।।

बाल दिनकर सन बड़ मुह लाल से ।।  157 ।।

देखू दशभाल की अशोक-वन हाल भेल ।।  158 ।।

मरि गेल रक्षक बेहट्ट कपि काल से ।।  159 ।।

।। दोबय छन्दः ।।

शुनितहिँ शीघ्र पठाओल सेना, 
बहुत निकट भट गेला ।।  160 ।।

लोहदण्ड-धर जहँ उदण्ड कपि, 
तनिकर सन्मुख भेला ।।  161 ।।

सिंहनाद कय सभकाँ मारल, 
नहि रण मे कपि हारल ।।  162 ।।

अर्द्ध-मरण सभ भेल कतो जन, 
रावण निकट पुकारल ।।  163 ।।

महाकाल वानर-तन धयलनि 
लङ्का-नाशक कारण ।।  164 ।।

क्षणमे विपिन अशोक उजाड़ल, 
फल-चय कयलनि पारण ।।  165 ।।

साहस लङ्का निर्भय आयल, 
के करताह निवारण ।।  166 ।।

लङ्कापति अपनहुँ चलि देखू, 
की थिक करू निर्धारण ।।  167 ।।

।। रूपमाला ।।

गेल छल सङ्ग्राम किङ्कर, 
निहत शुनि दशभाल ।।  168 ।।

कोप सौँ सत्वर पठाओल 
पाँच सेना-पाल ।।  169 ।।

स्तम्भ लौहक हाथ लयकैँ, 
तनिक तेहन हाल ।।  170 ।।

कयल मारुत-तनय विजयी, 
समरमे तत्काल ।।  171 ।।

तखन मन्त्रिक सात बालक, 
युद्ध उद्यत भेल ।।  172 ।।

क्रोध सौँ रावण पठाओल, 
गेल इर्ष्या लेल ।।  173 ।।

सकल जनकेँ मारि मारुत-तनय 
पुन तहि ठाम ।।  174 ।।

स्तम्भ लौहक अस्त्र एकटा, 
जितल भल संग्राम ।।  175 ।।

।। चौपाई।।

अगुआ चलला अक्षयकुमार । 
कयल बहुत सेना सहिआर ।।  176 ।।

ततय बाट तकितहिँ हनुमान । 
के पुन अओता जयतनि प्राण ।।  177 ।।

अबइत देखल अक्षयकुमार । 
मनमन मानल हर्ष अपार ।।  178 ।।

मुदगर कर लय उड़ल आकाश । 
सत्वर हिनकर करब विनाश ।।  179 ।।

मुदगर लय कर लगले घूरि । 
रावण-सुतक माथ देल चूरि ।।  180 ।।

रणमे माँचल हाहाकार । 
मुइला मुइला अक्षयकुमार ।।  181 ।।

कन्नारोहट उठ बड़ घोल । 
लड़त कहाँ के भभरल गोल ।।  182 ।।

सेना लड़ि लेलक भरिपोष । 
के सह मारुत-नन्दन रोष ।।  183 ।।

वार्ता विदित भेल दरबार । 
नहि छथि जिबइत अक्षयकुमार ।।  184 ।।

शुनि  रावणमन पैशल शोक । 
बाहर छल भल बुझय न लोक ।।  185 ।।

छल छथि अतिबल प्रबल प्रताप । 
रावण सन जनिकाँ छथि बाप ।।  186 ।।

 मेघनाद सन जनिकाँ भाय । 
वानर-हाथ मरण अन्याय ।।  187 ।।

लङ्कापति-मन कोप अपार । 
मेघनाद सौँ कयल विचार ।।  188 ।।

कय बेरि बजला भेल अन्धेरि । 
हम अपनहिँ जायब एहि बेरि ।।  189 ।।

अक्षयकुमारक अरि जहिठाम । 
ततय जाय जोतब सङ्ग्राम ।।  190 ।।

मारब अथवा बाँधब जाय । 
अहँइक लग हम देब’ पहुँचाय ।।  191 ।।

मेघनाद कहलनि शुनु तात । 
बानर कयलक अछि उत्पात ।।  192 ।।

शोक-वचन जनु बाजल जाय । 
हम जिबइत छी अक्षयक भाय ।।  193 ।।

आनब अपनेक निकट बझय । 
हमर पराक्रम देखल जाय ।।  194 ।।

 ।। चरणाकुल दोहा।।

ई कहि रथ चढ़ि राक्षस भट लय, 
मेघनाद चललाह ।।  195 ।।

मारुत-नन्दन शत्रु-निकन्दन, 
कपिवर जतय छलाह ।।  196 ।।

।। चौपाई।।

की रावण रावण-सन आन । 
अबइछ होइछ मन अनुमान ।।  197 ।।

गरजल गरुड़ जकाँ नभ जाय । 
स्तम्भ महामोट हाथ उठाय ।।  198 ।।

घुमइत गगन छला हनुमान । 
रावण-पुत्र चलौलक बाण ।।  199 ।।

आठ ह्रदयमे माथा पाँच । 
युगल चरण मे छयो नाराच ।।  200 ।।

पुच्छ मध्य मारल एक बाण । 
मारि कयल धुनि सिंह-समान ।।  201 ।।

कोप-विवश मारुत-सुत घूरि । 
रथ घोड़ा सारथि देल चूरि ।।  202 ।।

दोसर रथ चढ़ि आयल फेरि । 
कहल तोहर दुर्गति यहि बेरि ।।  203 ।।

नहि जीतब मन बुझल जखन । 
ब्रह्मास्त्रैँ कपि बाँधल तखन ।।  204 ।।

ब्रह्मास्त्रक कपि राखाल मान । 
अपनहि बझला मन किछु आन ।।  205 ।।

बाँधल बाँधल भय गेल सोर । 
यहन विश्व नहि घातो चोर ।।  206 ।।

बाँधल अछि लय चलु दरबार । 
करब तेहन जे दशक विचार ।।  207 ।।

जीवम्मुक्त थिकथि हनुमान । 
कि करत तनिका बन्धन आन ।।  208 ।।

राम-चरण-पङ्कज मन धयल । 
मारुत सुत बड़ लीला कयल ।।  209 ।।




इति श्री चन्द्रकवि-बिरचिते मिथिला-भाषा रामायणे सुन्दरकाण्डे तृतीयोऽध्यायः  



मैथिली सुन्दर काण्ड वॉल्यूम 3