मिथिला-भाषा सुन्दरकाण्ड
।। अथ प्रथमोऽध्यायः ।।
।। द्रुतविलम्वित छन्द ।।
धुतनगेऽम्बरगे परमोत्स्वे,
चकितभानुगणे जितमन्मथे ।। 1 ।।
जनकजाधिविनाशिमनोगतौ,
प्रणतिरस्तु हनूमति मारुतौ ।। 2 ।।
।। चौपाई ।।
जयजय राम नवल-घनश्याम।
सकललोक-लोचन अभिराम ।। 3 ।।
मनमे तनिक ध्यान दृढ राखि।
मारुतनन्दन उड़ला भाखि ।। 4 ।।
शतयोजन वारिधि विस्तार।
लाँघब हम मन हर्ष अपार ।। 5 ।।
रघुनायक-कर जनु शर मुक्त।
तथा हमहुँ जायब मुदयुक्त ।। 6 ।।
देखथु कपिगण जाइत गगन।
शोभित जेहन प्रवहमे भगन ।। 7 ।।
वैदेही हम देखब आज।
दोसर यहन आन की काज ।। 8 ।।
रघुनन्दन काँ वार्ता कहब।
सत्वर घुरब अनत नहि रहब ।। 9 ।।
नामस्मरण अन्त एक बार।
जनिकाँ भव-जलनिधि से पार ।।10।।
प्रभुक मुद्रिका हमरा सङ्ग।
होयत न हमर मनोरथ भङ्ग ।। 11 ।।
जायब लङ्का दनुज-समाज।
प्रभुप्रताप साधब सब काज ।। 12 ।।
।। सोरठा ।।
उड़ि चलला हनुमान,
ध्यान राम-पद मे सतत ।। 13 ।।
प्रबल प्रलय पवमान,
रौद्र-मूर्ति लङ्काभिमुख ।। 14 ।।
।। चौपाई ।।
लङ्का जायत छथि हनुमान।
की बल की मति से के जान ।। 15 ।।
सुरसा काँ सुर सत्वर कहल।
सर्प-जननि करू सुरहित टहल ।।16।।
बहुत दिवस धरि मानब गून।
जाउ शीघ्र घुरि आयब पून ।। 17 ।।
रोकब बाट कहब नहि मर्म्म।
बूझब की करइत छथि कर्म्म ।। 18 ।।
कहल कयल से नभ पथ रोकि।
चललहूँ कतय ततय देल टोकि।।19।।
हमरा आनन सत्वर आउ।
विहित भक्ष्य अन्यत्र न जाउ ।। 20 ।।
।। सबैया छन्द ।।
मारुत-सुत कहलनि शुनु माता,
राम काज कय आयब घूरि ।। 21 ।।
सीता-विषय कहब श्रीप्रभुकाँ
अहँक देब प्रत्याशा पूरि ।। 22 ।।
सुरसा देवि होइ अछि अरसा,
कल जोड़ैछी छाड़ू बाट ।। 23 ।।
अभिनत मारुति कहल न मानल,
नमस्कार कय भेलहुँ आँट ।। 24 ।।
सुरसा कहल शून रे बाबू
नहि छोड़ब विनु खयलैँ ।। 25 ।।
एखनहूँ धरि जीवन-प्रत्याशा,
हमरा मुहमे आयलैँ ।। 26 ।।
बहुत दिनासैँ हम भुखलि छी,
विनु आहारैँ मरबे ।। 27 ।।
हाथक मुसरी बियरि मे दय
कड़े कड़े नहि करबे ।। 28 ।।
।। चौपाई ।।
मारुति कहल देबि मुह बाउ।
खाय शकी तौँ हमरा खाउ ।। 29 ।।
योजन भरि विस्तर कर काय।
सुरसा मुह दश कोश बनाय ।। 30 ।।
तकर द्विगुण हनुमानो कयल।
बिश योजन मुख सुरसा धयल ।।31।।
योजन तीस वदन हनुमान।
योजन हुनक पचाश प्रमान ।। 32 ।।
अति लघु बनि मुह बाहर जाय।
नमस्कार हँसि कहल शूनाय ।। 33 ।।
बहरयलहूँ देवि आनन पैसि।
हम जायत छी रहब न बैसि ।। 34 ।।
।। दोहा ।।
सुरसा सन्तुष्टा कहल,
सत्वर लङ्का जाय ।। 35 ।।
राम कार्य्य साधन करू,
हम छी सर्पक माय ।। 36 ।।
देव पठावल बुझल बल,
सीता देखू जाय ।। 37 ।।
कुशल फिरब सीता-कुशल,
रघुवर देब शुनाय ।। 38 ।।
तखन चलल हनुमान पुन,
गरुड़-गमन आकाश ।। 39 ।।
जलधि तहाँ मैनाक सौँ,
कयलनि वचन प्रकाश ।। 40 ।।
।। चौपाइ ।।
कयल सगर-कुल बड़ उपकार।
तनिक बढ़ायोल भेलहुँ अपार ।। 41 ।।
तनिकहि वंश राम अवतार।
हुनक दूत जाइत छथि पार ।। 42 ।।
जलनिधि कहल जहन हित वाक।
जलसौँ उच्च भेला मैनाक ।। 43 ।।
काञ्चन-मणि-मय श्रृङ्ग अनूप।
ततय पुरुष एक दिव्य स्वरूप।।44।।
हे कपि हमर नाम मैनाक।
जलधि भितर डर मन मधवा क।।45।।
मारुत-नन्दन करू विशराम।
खाउ अमृत सन फल यही ठाम।।46।।
पथ विशराम न भोजन आज।
अछि कर्तव्य राम-प्रिय काज ।। 47 ।।
शिखरक परश हाथ सौँ कयल।
गगन-मार्ग पक्षी जकाँ धयल ।। 48 ।।
।। दोहा ।।
धयलक छाया-ग्राहिणी,
कयलक गमनक रोध ।। 49 ।।
हनुमानक मनमे तखन,
बाढ़ल अतिशय क्रोध ।। 50 ।।
घोरस्वरूपा सिंहिका,
छाया धय धय खाय ।। 51 ।।
नभचरकाँ ओ राक्षसी,
गगन गमन जे जाय ।। 52 ।।
देखल तनिकाँ मरुतसुत,
मारल झट दय लात ।। 53 ।।
पुनि उड़ि के चललाह से,
शान्ति भेल उत्पात ।। 54 ।।
।। हरिपद ।।
।। पदकुल दोहा वा ।।
गिरि त्रिकूटपर लङ्कानगरी
नाना तरु फल बेश ।। 55 ।।
नाना खग मृग गण सौँ शोभित
पुष्पलतावृत देश ।। 56 ।।
दुर्ग्ग दुर्ग्ग मे रोकत टोकत
चिन्तित मन-हनुमान ।। 57 ।।
करब प्रवेश राति कय तहि पुर
दिवा युक्ति नहि आन ।। 58 ।।
।। चौपाइ ।।
राम-चरण-सरसिज कय ध्यान।
सूक्ष्मरूप भेला हनुमान ।। 59 ।।
पुरी-प्रवेश कयल निशि जखन।
बुझलक लङ्का नगरी तखन ।। 60 ।।
कहलक गमहि चलल छी चोर।
हम करइत छी गञ्जन तोर ।। 61 ।।
बुझल न अछि दशकण्ठ-प्रताप।
चललहूँ कतय अहा चुपचाप ।। 62 ।।
चुप रह कहलैँ पढ़लक गारि।
चट दय लात चलौलक मारि ।। 63 ।।
वाम मुष्टि हरि हनल सुतारि।
खसली अवनीमे ओ हारि ।। 64 ।।
शोणित बान्ति करय कय बेरि।
करति कि यहन उपद्रव फेरि ।। 65 ।।
लङ्का देवी विकला कान।
बरिया काँ नहि लागय बान ।। 66 ।।
पुर्व्व विरञ्धि कहल छल जैह।
अनुभव होइछ भेल की सैह ।। 67 ।।
।। षट्पद ।।
नारायण अवतार राम
त्रेता मे हयता ।। 68 ।।
पिता-वचन सह-बन्धु
जानकी सङ्गहि जयता ।। 69 ।।
माया-सीता ततय मूढ़
दशकन्धर हरता ।। 70 ।।
बालि मारि सुग्रीव सङ्ग
प्रभु मैत्री करता ।। 71 ।।
अहँ काँ तनिकर दूत कपि,
मारि मुका विकला करत ।। 72 ।।
कहलनि विधि शुनू लङ्किनी,
तखन बुझब रावण मरत ।। 73 ।।
।। चौपाइ ।।
वनिता-उपवन अरुण अशोक।
महा भयङ्करि राक्षसि लोक ।। 74 ।।
जनक-नन्दिनी छथि तहि ठाम।
शोभित वृक्ष शिंशपा नाम ।। 75 ।।
कि कहब शोभा देखब जाय।
हमहूँ धन्या दर्शन पाय ।। 76 ।।
विजय बनल अछि यश अवदात।
हमरा हानि कि सहि आघात ।। 77 ।।
देखब राम नवल-धनश्याम।
अयोता शीघ्र रहब यहि ठाम ।। 78 ।।
शुनि हरि हँसल चलल उत्साह।
घरहिक भेदिया लङ्का डाह ।। 79 ।।
जखन पवन-सुत रघुपति-चार।
दुर्ग-महोदधि उतरल पार ।। 80 ।।
दशमुख वाम अङ्ग भुज नयन।
फरकय लाग अभागक अयन ।।81।।
भल मन्द सगुन सकल फल जान।
कालक त्रास न दशमुख मान ।। 82 ।।
इति श्री चन्द्रकवि-विरचित मिथिला-भाषा रामायणे सुन्दरकाण्डे प्रथमोऽध्यायः