।। चौपाइ ।।
दशमुख नग्न सकल परिवार । तेल लगओलय भरल विकार ।। 95 ।।
गोबर डाबर मध्य नहाथि । खर पर चढ़ल याम्य दिश जाथि ।। 96 ।।
रावण मरता सहित समाज । प्राप्त विभीषण काँ भेल राज ।। 97 ।।
राम जानकी मिलि घर जायत । दुखमय लङ्का सत्वर हयत ।। 98 ।।
करत अनर्थ अखण्डित नोर । धन्य धन्य सीता हिय तोर ।। 99 ।।
करू करू धैरज कहब कि आन । मुठिएक धुरि न चानमलान ।। 100 ।।
।। गीत ।।
त्रिजटा कहल शुनू जानकी नवीन कथा ।। 101 ।।
वानर-विशेष वर वाटिका उजारलक ।। 102 ।।
रक्षक प्रबल रण-दक्ष लक्ष लक्ष खेत ।। 103 ।।
मुइल मूर्छित कतो रावण पुकारलक ।। 104 ।।
“चन्द्र” भन यहन न देखलशुनल छल ।। 105 ।।
अक्षयकुमार काँ पटकि झट मारलक ।। 106 ।।
कतहूँ न हारलक वीरता प्रचारलक ।। 107 ।।
रावण-पालित हाय लङ्कापुर जारलक ।। 108 ।।
।। सवैया छन्दः ।।
स्वप्न कथा राक्षसि-गण शुनिकेँ ।। 109 ।।
त्यागि उपद्रव गेलि डराय ।। 110 ।।
मद-मातलि छलि जागलि थाकलि ।। 111 ।।
निन्द-विवश भेलि जहँ तहँ जाय ! ।। 112 ।।
सीता तखन विकलि मन-भीता ।। 113 ।।
दुःख-मूर्छिता रहति-उपाय ।। 114 ।।
कनयित कलपि कहथि कि करू विधि ।। 115 ।।
प्रातहि राक्षसि जाइति खाय ।। 116 ।।
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