सारवती छन्दः
राम कहू पुन राम कहू, मारुत-नन्दन धन्य अहूँ ।। 206 ।।
आब चलू छथि नाथ जहाँ, की सुखलाभ अनन्त तहाँ ।। 207 ।।
सोरठा
चलल वीर-समुदाय, महावीर अज्ञआय चल ।। 208 ।।
प्रस्त्रवणाचल जाय कपिपति -मधुवन प्राप्त सभ ।। 209 ।।
दोवय छन्दः
वानर सकल कहल अङ्गद काँ, अहँ छो भूपक बालक ।। 210 ।।
आज्ञा देल जाय मधुवन -फल खायब अपनैँ पालक ।। 211 ।।
जनितहि छो सभ जन छो भुखले, फलमधु यहन न पायब पालक ।। 212 ।।
खाय पोबि सन्तुष्ट चित्तसौँ, प्रभुक निकट मे जायब पालक ।। 213 ।।
चौपाई
अङ्गद कहल सुखित फल खाउ । किछ नहि ककरो डरैँ डराउ ।। 214 ।।
कपि फल खाथि करथि मधुपान । रक्षक हटल पटल नहि मान ।। 215 ।।
दधिमुख – अनुशासन काँ पाय । देल रक्षक सभकैँ लठिआय ।। 216 ।।
अतिबल वानर भूखल घूरि । सभ रक्षक काँ देलनि चूरि ।। 217 ।।
दधिमुख-मुख भय गेल मलान । कुपित न बजला से मतिमान ।। 218 ।।
सभ रक्षक कैँ संग लागय । कपिपति काँ कहि देल देखाय ।। 219 ।।
तारा तनय हठी हनुमान । जेहन आगि केँ पवन दीवान ।। 220 ।।
मधुवन फल भल खयलय जाथि । किछु नहि अपनैक त्रास डराथि ।। 221 ।।
हम नहि करब विपिन रखबारि । किछु बजितौँ तौँ खइतहुँ मारि ।। 222 ।।
मधुवन फल राखल छल ढेर । लुटि भेल काकरहु नहि टेर ।। 223 ।।
युवराजक हनुमान प्रधान । विपिन विनाशक कि कहब ज्ञान ।। 224 ।।
हम छी कपि – भूपालक माम । नहि घुरि जायब गञ्जन ठाम ।। 225 ।।
सत्य कहै छी शुनू कपिनाथ । मर्य्यादा रह अपनहिँ हाथ ।। 226 ।।
मधुवन फल मधु कयलक नाश । भूतक घर सन्ततिक निवास ।। 227 ।।
शुनल वचन कहलनि जे माम । कपिपति-मन नहि कोपक ठाम ।। 228 ।।
हर्षक नोर भरल दुहु आँखि । अयला अयला उठला भाखि ।। 229 ।।
सीता देखि आयल हनुमान । हमरा मन से निश्चय ज्ञान ।। 230 ।।
से शुनि पुछलनि अपनहि राम । मारि भेल अछि की कोन ठाम ।। 231 ।।
की कहयित छथि कपिपति माम । लेल कि जनकनन्दिनी नाम ।। 232 ।।
कहलनि गेल जे दक्षिण देश । आयल सभ जन रहित कलेश ।। 233 ।।
कार्य्यसिद्धि कयलनि हनुमान । मधुवन फल के चाखत आन ।। 234 ।।
दधिमुखकाँ कहलनि अहँ जाउ । सभ जनकाँ सत्वर लय आउ ।। 235 ।।
बहुत शीघ्र से बन मे जाय । अङ्गदादि काँ कहल बुझाय ।। 236 ।।
रामचन्द्र लक्ष्मण कपिराज । बड़ सन्तुष्ट भेल छथि आज ।। 237 ।।
शीघ्र बजौलनि करू प्रयाण । भाग्य ककर तुल अहँक समान ।। 238 ।।
शुनतहिँ सकल जन तुष्ट । प्रभुक समक्ष मुदित-मन पुष्ट ।। 239 ।।
अङ्गद आदि सहित हनुमान । प्रणत कहल हरिभक्त – प्रधान ।। 240 ।।
मारुत-नन्दन जोड़ल हाथ । कृपा – जलधि जय जय रघुनाथ ।। 241 ।।
वैदेही हम देखल आँखि । कुशल प्रभुक विधिवत सम भाखि ।। 242 ।।
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