चौपाई
जरय न कपि जारइत अछि गाम। कह जन भेल विधाता वाम ।। 125 ।।
लोहस्तम्भ कपिक अछि हाथ। जे लग भिड़थिन फोड़थिन माँथ ।। 126 ।।
सगर नगर अनल क सञ्चार । विना विभीषण घर ओ द्वार ।। 127 ।।
धर धर कहथि निकट नहि जाथि । हाथी कुक्कुर रीति डराथि ।। 128 ।।
पोटथि छाती वनिता कानि । कपि-उतपात भेल सभ हानि ।। 129 ।।
जरल कनक -मणिमय वर गेह । सम्पति रह की पाप-सिनेह ।। 130 ।।
दूत-पराक्रम कहल न जाय । भागवान काँ भूत कमाय ।। 131 ।।
कपि कह लङ्का करब विनाश । घैल काँच केँ मुगरक आश ।। 132 ।।
धिक रावण आनल न मलान । चोरक मुह जनु चमकय चान ।। 133 ।।
दशकन्धर की रहबह चैन । भल-घर-मध देलह अछि बैन ।। 134 ।।
हनुमान लग केओ न जाय। मारिक डर सौँ भूत पड़ाय ।। 135 ।।
घनाक्षरी
अनुचित भेल न विचार दृढ कय लेल ।। 136 ।।
छोड़ि देल वानर विकट अधबध कै ।। 137 ।।
दिन भेल वक्र आब ककरो न शक अछि ।। 138 ।।
एक छानि आगि तौँ हजार घर धधकै ।। 139 ।।
प्रलय-कृशानु सन तखनुक भानु सन ।। 140 ।।
वीर हनुमान सनमुख जित-युधकै ।। 141 ।।
ताल घहराय के वारण करै जाय ।। 142 ।।
जत कयल अन्याय फल रावण अबुध कै ।। 143 ।।
शिखरिणी छन्दः
अरे बाबा दावानल-सदृश लङ्का जरइयै ।। 144 ।।
अधर्म्मी लङ्केशे तनिक सभ पापे करइयै ।। 145 ।।
पड़ा रे रे बाबु किछु न मन काबू परइयै ।। 146 ।।
विना पानि लङ्का-नृपति पट-रानी मरइयै ।। 147 ।।
नाराच
पड़ा पड़ा बड़ा बड़ा गृहाट्ट जारि देलकौ ।। 148 ।।
विदेह-कन्याका-विपत्ति जानि कानि लेलकौ ।। 149 ।।
बहुत छोट वानरे सभैक हाल कैलकौ ।। 150 ।।
प्रचण्ड दण्ड-देनिहार दूत चोर धैलकौ ।। 151।।
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