।। चौपाई।।
की रावण रावण-सन आन । अबइछ होइछ मन अनुमान ।। 197 ।।
गरजल गरुड़ जकाँ नभ जाय । स्तम्भ महामोट हाथ उठाय ।। 198 ।।
घुमइत गगन छला हनुमान । रावण-पुत्र चलौलक बाण ।। 199 ।।
आठ ह्रदयमे माथा पाँच । युगल चरण मे छयो नाराच ।। 200 ।।
पुच्छ मध्य मारल एक बाण । मारि कयल धुनि सिंह-समान ।। 201 ।।
कोप-विवश मारुत-सुत घूरि । रथ घोड़ा सारथि देल चूरि ।। 202 ।।
दोसर रथ चढ़ि आयल फेरि । कहल तोहर दुर्गति यहि बेरि ।। 203 ।।
नहि जीतब मन बुझल जखन । ब्रह्मास्त्रैँ कपि बाँधल तखन ।। 204 ।।
ब्रह्मास्त्रक कपि राखाल मान । अपनहि बझला मन किछु आन ।। 205 ।।
बाँधल बाँधल भय गेल सोर । यहन विश्व नहि घातो चोर ।। 206 ।।
बाँधल अछि लय चलु दरबार । करब तेहन जे दशक विचार ।। 207 ।।
जीवम्मुक्त थिकथि हनुमान । कि करत तनिका बन्धन आन ।। 208 ।।
राम-चरण-पङ्कज मन धयल । मारुत सुत बड़ लीला कयल ।। 209 ।।
इति श्री चन्द्रकवि-बिरचिते मिथिला-भाषा रामायणे सुन्दरकाण्डे तृतीयोऽध्यायः
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